Sunday, October 30, 2011

Who is Sailesh Gandhi (RTI)

सूचना अधिकार कानून - शैलेष गांधी (Right To Information Act - Sailesh Gandhi)

शैलेष गांधी- यह दो शब्द खासे जाने पहचाने लगते हैं। सूचना के अधिकार कानून के तहत अर्जियां देने के मामले में शैलेष का नाम कौन नहीं जानता। केन्द्रीय सूचना आयुक्त कार्यालय में अब वे बहुत ज्यादा दिन सूचना संबंधी अर्जियां नहीं लगा पाएंगे, क्योंकि उन्हें केन्द्रीय सूचना आयुक्त बनाया गया है। सच, वे एक समाजसेवी से प्रशासक में तब्दील हो गए हैं। वे पहले गैर नौकरशाह हैं जिन्हें इस पद के लिए नामित किया गया है, यह एक स्वागतयोग्य परिवर्तन है। एक समाजसेवी के तौर पर वे अब तक 1000 प्रार्थना पत्र पेश कर चुके हैं। प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय राहत कोष के व्यय संबंधी जानकारी चाहने का मामला उनके कुछ प्रसिद्ध मामलों में से एक है।


चयन समिति के सदस्य एल.के. आडवाणी के आश्चर्यजनक तौर से हस्तक्षेप के बाद शैलेष का नाम सामने आया। विपक्ष के नेता ने कथित तौर पर 2002 के गुजरात दंगों में मोदी सरकार पर आरोप लगाने की वजह से एक अन्य उम्मीदवार पूर्व पुलिस अधिकारी आर.बी. श्रीकुमार का नाम खारिज कर दिया था। गांधी ने इस पूर्व पुलिस अधिकारी का स्थान लिया।

अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित व्यक्ति के रूप में पहचाने जाने वाले शैलेष वेतन के रूप में एक रूपया लेंगे और कार्यालयी आवास और वाहन जैसी किसी भी सुविधा का उपभोग नहीं करेंगे। पांच साल पहले उन्होंने अपनी सफल 23 साल पुरानी प्लास्टिक फैक्ट्री को बेच दिया जिससे वे अपनी बाकी की जिंदगी समाजसेवा में बिता सकें। जो कुल रूपया मिला उन्होंने बैैंक में स्थाई जमा करवा दिया और अब उसके ब्याज से परिवार का गुजारा होता है। वे कहते हैं -"मैं समझता हूं मुझे जिंदगी में सब कुछ मिला, अच्छी शिक्षा, एक सफल कòरियर और एक अच्छा परिवार। अब वह समय आ गया है जब मैं समाज को कुछ वापस दे सकूं।"

इस 61 वर्षीय पूर्व आईआईटी छात्र को अच्छे शासन और जन जीवन में उत्तरदायित्व के लिए सूचना अधिकार कानून का प्रभावी उपयोग करने के लिए इस साल नागरिक स्वतंत्रता का नानी पालखीवाला अवार्ड दिया गया। सूचना अधिकार कानून के तहत जानकारी लेने के बाद अब स्थापित होते हुए प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री राहत कोष की विसंगतियों को उजागर करने का मामला हो या महाराष्ट्र के पूर्व वन मंत्री के अपनी सजा के दौरान गैर कानूनी रूप से जे जे अस्पताल में रहने के मामला, उन्होंने लम्बी लड़ाई लड़ी।

सूचना आयुक्त की अपनी नई भूमिका में गांधी ने शपथ ली है कि या तो वे तीन महीने में सारी अपीलों को निपटा देंगे या अपने वादे को पूरा नहीं कर पाने पर पद छोड़ देंगे। उनका पहला और सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य सीआईसी में बकाया शिकायतों और अपीलों की संख्या को कम करना है। कई बार अपीलें तीन या छह महीने बाद सुनवाई के लिए आती हैं और तब तक काफी देर हो चुकी होती है और प्रार्थी का सूचना चाहने का औचित्य ही बाकी नहीं रह जाता। गांधी यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि कोई भी अपील उनके पास तीन महीने से ज्यादा ना रहे। इस उद्देश्य से वे कोई समझौता नहीं करना चाहते। गांधी का दृढ़ विश्वास है कि उनके पास ऎसे पर्याप्त सबूत हैं जो साबित करते हैं कि एक आयोग के लिए हर साल 4000 अपीलें निपटाना बेहद आसान काम है। उनका अध्ययन कहता है कि एक कमीशन के द्वारा औसतन 450 से 900 मामले निपटाए गए हैं। मुम्बई उच्च न्यायालय का एक जज हर साल औसतन 2500 मामलों का निपटारा करता है। यहां किसी मामले को निपटाने के लिए संविधान के बीस से भी ज्यादा कानूनों को देखना होता है जबकि सूचना आयोग को सिर्फ एक सूचना अधिकार कानून ही देखना होता है। सूचना के अधिकार की क्रांति और साथ ही साथ सूचना जानने का अधिकार खासा रूचिकर है।


News source : http://www.patrika.com/article.aspx?id=5460
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